संसार में ऐसी लिप्त हो गयी या कहिये की फँस गयी हूँ कि न अपनी कहने का अवसर मिलता है न ही जग के विषय में अधिक सोचने का!
सारी सोच बस अपने घर एवं घरवालों की छोटी परिधि में सिमट कर रह गयी है और मैं और मेरी सोच उसकी गिरफ्त में असहाय सी बन गयी है.
अच्छी बात ये है कि मैंने सोच लिया है - बस और नहीं - मुझे इस चक्कर से बाहर निकलना है. यह ब्लॉग मेरे इस नए संकल्प का साथी भी बनेगा और साक्षी भी.
हम दोनों को मेरी शुभ कामनाएं!