Tuesday, May 20, 2014

नया संकल्प


संसार में ऐसी लिप्त हो गयी या कहिये की फँस गयी हूँ कि न अपनी कहने का अवसर मिलता है न ही जग के विषय में अधिक सोचने का!
सारी सोच बस अपने घर एवं घरवालों की छोटी परिधि में सिमट कर रह गयी है और मैं और मेरी सोच उसकी गिरफ्त में असहाय सी बन गयी है.
अच्छी बात ये है कि मैंने सोच लिया है - बस और नहीं - मुझे इस चक्कर से बाहर निकलना है. यह ब्लॉग मेरे इस नए संकल्प का साथी भी बनेगा और साक्षी भी.
हम दोनों को मेरी शुभ कामनाएं!



जो नाम मैंने सोचा था अपने ब्लॉग का, "रोज़ीना की अपनी  पराई" मुझे नहीं मिला या नहीं पसंद आया. मुझे कारण स्मरण नहीं है परन्तु वर्तमान नाम अधिक उपयुक्त लगता  है - कुछ अपनी, कुछ पराई।  
मैंने अपने ब्लॉग को  नाम दिया है "रोज़िना की - अपनी-पराई". विचार है की कभी अपनी कहूं और कभी परायों की. यानि कभी आपबीती तो कभी जगबीती लिखूं. देखतें हैं कितना लिख पाती हूँ.