Saturday, December 27, 2014

अनोखा आकर्षण

25th dec,2014
26th Dec 2014

अनोखा आकर्षण 
द्वारा
मधु राजन 

पृथ्वी,
कैसा है ये आकर्षण
तेरा जलते सूरज से
जो  नचा रहा है तुझको
तेरी ही एक धुरी पे

काट रही तू भी तो 
सदियों से चक्कर उसका
बिन कहे-सुने-मांगे कुछ  
पर दिल उसका ना पसीजा 
                

 क्या मिलना निर्मोही से 
क्यों भुला ना उसको देती 
वो भाव ना तेरा समझे
औ' उगले जाये अग्नि


पृथ्वी थोड़ा मुसकाई
जैसे वसंत ऋतु आई
बोली यह प्रेम की भाषा
ना है व्यापार किसी का

  नहीं लेन-देन औ मोल-तोल 
का कोई ठांव यहां है
मैं देख उसे सुख पाऊँ 
अधिक ना कुछ आशा है

*     *     *     *      *      *

Saturday, December 6, 2014

नीचे की ओर गिरती राजनीति

मेरा लिखने का बहुत मन हो रहा है. परन्तु क्या लिखूं? साध्वी निरंजन ज्योति  के समाचार सुन कर जो सोचा था लिखने को वह भूल गयी. भ ज प ने जो दलित कार्ड निकाला है वो इतना गिरा हुआ विचार है कि सुन कर disgusting लगा. जब कोई और बचाव का रास्ता नहीं मिला तो दलित कार्ड निकाल लिया। विपक्ष इस आरोप को नकारने में लग जाएगा  और पब्लिक साध्वी का मुद्दा भूल जाएगी।