श्री रामनाथ स्वामी मंदिर रामेश्वरम
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श्री arulmigu रामनाथ स्वामी मंदिर रामेश्वरम
हिन्दुओं के पवित्र तीर्थ स्थानों में चार धाम अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं. यह चार धाम भारत की चार दिशाओं में स्थित हैं. पूर्व में ओडिशा के समुद्र तट पर जगन्नाथ पुरी है और पश्चिम में गुजरात में अरब सागर के तट पर है द्वारिका. उत्तर में विशाल हिमालय के एक पर्वत पर है बद्रीनाथ तो दक्षिण में बंगाल की खाड़ी एवं हिन्द महासागर की लहरों के बीच स्थित पम्बन द्वीप में है
रामेश्वरम। इस को "दक्षिण की काशी" भी कहते हैं. पम्बन द्वीप तमिलनाडु का हिस्सा है और भारतीय भू खण्ड से लगभग २ किलोमीटर पूर्व में सागर में पाक स्ट्रेट में, मन्नार खाड़ी के उत्तर में स्थित है.
इस द्वीप तक पहुँचने के लिए यहाँ पर प्रसिद्द पमबनपुल है- एक रेल पुल जो १०० वर्षों से भी अधिक पुराना है. दूसरा सड़क पुल करीब २५ वर्ष पुराना है. इस द्वीप तक जाने के लिए यह पुल ही एकमात्र भूमि मार्ग है.
श्री रामनाथस्वामी मंदिर शिवजी का मंदिर है. कहते हैं श्री राम लंका में रावण का वध करने के पश्चात सीता को ले कर जब यहाँ आये तो शिव की पूजा करना चाहते थे. इस हेतु हनुमानजी को एक विशेष शिवलिंग लाने के लिए हिमालय में कैलाश या काशी भेजा गया.(विभिन्न स्थानों पर मैंने इन दोनों स्थानों का नाम पाया. अतः कह नहीं सकती कि हनुमानजी इन दोनों में किस स्थान पर गए थे.) हनुमानजी को लौटने में विलम्ब होता देख सीताजी ने सागर तट पर रेत से एक शिवलिंग बनादिया ताकि पूजा का शुभ समय न निकल जाए. श्री राम ने इसी शिवलिंग की पूजा अर्चना की. इसी कारण से इस मंदिर में दो शिवलिंग हैं. एक बड़ा वाला जहाँ पर सीताजी ने शिवलिंग स्थापित किया था. उसी मंदिर के अंदर दूसरा जो हनुमानजी काशी या हिमालय से लाये थे.
वैसे केवल यह मंदिर ही नहीं, पूरा द्वीप श्री राम की जीवन सम्बंधित घटनाओं से जुड़ा हुआ है. यह घटनाएं उस समय की हैं जब श्री राम रावण पर आक्रमण करने लंका गए एवं विजयी हो कर सीता के साथ वापस लौटे. मेरे विचार से और किसी स्थान में राम जीवन से सम्बंधित इतने स्थान नहीं मिलेंगे. यहीं से श्री राम ने राम सेतु का निर्माण कर लंका पर आक्रमण के लिए कूच किया था. लंका विजय के पश्चात यहीं पर आ कर उन्होंने पुनः शिव की पूजा की. यहीं पर सीता ने अग्नि-परीक्षा दी. इसी द्वीप में कहते हैं विभीषण ने श्री राम के समक्ष समर्पण किया था. उस स्थान पर आज एक सुन्दर मंदिर है जो Kothandaramaswamy Temple नाम से जाना जाता है. यह रामेश्वरम से १३ किलोमीटर दूर पम्बन द्वीप के सबसे दक्षिण केंद्र (point) पर स्थित है.
धार्मिक स्थान होने के साथ साथ रामेश्वरम पर्यटन (tourism) के लिए भी बहुत लोकप्रिय है. १९१४ में समुद्र के ऊपर बना पम्बन पुल १०० वर्ष पहले अवश्य एक अचम्भा रहा होगा. २००९ के पहले तक भारत में यह अकेला समुद्र के ऊपर बना पुल था जब मुंबई में बांद्रा-वर्ली सी लिंक-जिसे राजीव गांधी सी लिंक भी कहते हैं बन कर तैयार हुआ.
मंदिर निर्माण ११वी या १२वी शताब्दी में हुआ. और तद्पश्चात अलग-अलग राजाओं द्वारा होता रहा. आज का जो रूप है वह १७वी सदी में निर्मित हुआ. मंदिर विशाल एवं वैभवपूर्ण है. इसके चारों ओर लम्बे-लम्बे वरांडे (कॉरिडोर्स) हैं जो किसी भी मंदिर के सबसे लम्बे कॉरिडोर्स हैं. मेरे अनुमान से यह विश्व के सबसे लम्बे कॉरिडोर हैं. इनके दोनों ओर बड़े बड़े खम्बे लगे हैं जो जमीन से करीब ५ फुट ऊंचे प्लेटफार्म पर खड़े हैं.
तमिलनाडु टूरिज्म डेवलपमेंट कारपोरेशन (TTDC)!
आप सुन रहे हैं ?
मंदिर से लगभग ५-६०० मीटर दूर से वाहनों का आना मना है. मैं यहाँ मंदिर के पूर्वी द्वार की बात कर रही हूँ. रास्ता सागर के साथ-साथ समानान्तर चलता है. सब को पैदल चलना पड़ता है जो की बिलकुल सही है. जो सही नहीं है वह है रास्ते की गन्दगी! इस रास्ते को बिलकुल साफ़-सुथरा चमकता हुआ होना चाहिए. आप कल्पना कीजिये, एक ओर बंगाल की खाड़ी-सागर- हिलोले ले रहा है. सामने श्री रामनाथस्वामी मंदिर का भव्य द्वार है. ह्रदय में भक्ति का सागर उमड़ रहा है.
पर्यटकों के मन इस प्रसिद्द मंदिर को देखने का अवसर मिलने से उत्साहित हैं. हमारे देश में अधिकतर व्यक्तियों को सागर देखने के अवसर कम ही मिलते हैं. हो सकता है बहुत से पहली बार ही इस दृश्य का आनंद उठा रहे हों. परन्तु रुकिए, कहाँ समय है आनंद उठाने का? आपका पूरा ध्यान तो नीचे सड़क और उस पर बिखरी गन्दगी की ओर है. सड़क पर गाय-बकरी- कुत्ते घूम रहे हैं. विशेषकर बड़ा सा कूड़े का डिब्बा जिसमें अंदर पता नहीं कितना कूड़ा है या नहीं परन्तु उसके बाहर अवश्य चारों ओर कूड़ा बिखरा पड़ा है जिसमें गाय- बकरियां खाना ढूंढ रही हैं. भक्तों के साथ-साथ अनेकों देशी-विदेशी पर्यटक भी इस रास्ते पर चल रहे हैं. उनको यह दृश्य एक व्यंग से कम नहीं लगेगा. हम इतनी बातें करते हैं गौ माता और गौ रक्षा की. और हम उनको ठीक से खिला भी नहीं सकते! उन्हें कूड़े में मुंह मारना पड़ता है. तभी एक थोड़ा हास्यास्पद दृश्य भी दिखा. एक ओर ४-५ लोग बैठे हुए थे. उनमें से एक महिला ने, जैसी की दक्षिणी भारत में प्रथा है, बालों में सुन्दर सी फूलों की वेणी लगाई हुयी थी. अचानक एक बकरी ने सोचा कि नाश्ते के लिए वह फूल सबसे उपयुक्त वस्तु हैं. बिना कोई संकेत दिए वह महिला के पास पंहुची और उसने अपना मुंह महिला के सर पर लगाया। महिला एकदम से चौंकी. बकरी सच ही उसके सर को खाने जा रही थी.
मंदिर के अंदर भी साइन वगैरह की कमी है. किधर से एवं किस क्रम से तीर्थम- कुएं जहाँ पर दर्शन से पहले स्नान करने की प्रथा है - में जाना है यह पता नहीं लगता. इसके अतिरिक्त क्योंकि भक्त गण स्नान कर-कर के एक से दूसरे तीर्थम में जाते हैं, सारे रास्ते गीले-गीले होते हैं. कहीं कहीं तो एकदम कीचड़ का आभास होता है. मुझे पूरा विश्वास है यदि TTDC एवं मंदिर मैनेजमेंट इस और ध्यान देंगे तो अवश्य ही कोई रास्ता निकाल लेंगे।
हमारे पूर्वजों ने बिना आधुनिक सुविधाओं के कैसे इतने सुन्दर और भव्य मंदिर का निर्माण किया यह अत्यन्त प्रशंसनीय तो है ही आश्चर्य चकित भी करता है.ऐसी धरोहर छोड़ने के लिए हम उन्हें ह्रदय से नमन करते हैं. साथ ही हमारा कर्त्तव्य बनता है की हम इस धरोहर को सहेज कर रखें.
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मंदिर से लगभग ५-६०० मीटर दूर से वाहनों का आना मना है. मैं यहाँ मंदिर के पूर्वी द्वार की बात कर रही हूँ. रास्ता सागर के साथ-साथ समानान्तर चलता है. सब को पैदल चलना पड़ता है जो की बिलकुल सही है. जो सही नहीं है वह है रास्ते की गन्दगी! इस रास्ते को बिलकुल साफ़-सुथरा चमकता हुआ होना चाहिए. आप कल्पना कीजिये, एक ओर बंगाल की खाड़ी-सागर- हिलोले ले रहा है. सामने श्री रामनाथस्वामी मंदिर का भव्य द्वार है. ह्रदय में भक्ति का सागर उमड़ रहा है.
पर्यटकों के मन इस प्रसिद्द मंदिर को देखने का अवसर मिलने से उत्साहित हैं. हमारे देश में अधिकतर व्यक्तियों को सागर देखने के अवसर कम ही मिलते हैं. हो सकता है बहुत से पहली बार ही इस दृश्य का आनंद उठा रहे हों. परन्तु रुकिए, कहाँ समय है आनंद उठाने का? आपका पूरा ध्यान तो नीचे सड़क और उस पर बिखरी गन्दगी की ओर है. सड़क पर गाय-बकरी- कुत्ते घूम रहे हैं. विशेषकर बड़ा सा कूड़े का डिब्बा जिसमें अंदर पता नहीं कितना कूड़ा है या नहीं परन्तु उसके बाहर अवश्य चारों ओर कूड़ा बिखरा पड़ा है जिसमें गाय- बकरियां खाना ढूंढ रही हैं. भक्तों के साथ-साथ अनेकों देशी-विदेशी पर्यटक भी इस रास्ते पर चल रहे हैं. उनको यह दृश्य एक व्यंग से कम नहीं लगेगा. हम इतनी बातें करते हैं गौ माता और गौ रक्षा की. और हम उनको ठीक से खिला भी नहीं सकते! उन्हें कूड़े में मुंह मारना पड़ता है. तभी एक थोड़ा हास्यास्पद दृश्य भी दिखा. एक ओर ४-५ लोग बैठे हुए थे. उनमें से एक महिला ने, जैसी की दक्षिणी भारत में प्रथा है, बालों में सुन्दर सी फूलों की वेणी लगाई हुयी थी. अचानक एक बकरी ने सोचा कि नाश्ते के लिए वह फूल सबसे उपयुक्त वस्तु हैं. बिना कोई संकेत दिए वह महिला के पास पंहुची और उसने अपना मुंह महिला के सर पर लगाया। महिला एकदम से चौंकी. बकरी सच ही उसके सर को खाने जा रही थी.
मंदिर के अंदर भी साइन वगैरह की कमी है. किधर से एवं किस क्रम से तीर्थम- कुएं जहाँ पर दर्शन से पहले स्नान करने की प्रथा है - में जाना है यह पता नहीं लगता. इसके अतिरिक्त क्योंकि भक्त गण स्नान कर-कर के एक से दूसरे तीर्थम में जाते हैं, सारे रास्ते गीले-गीले होते हैं. कहीं कहीं तो एकदम कीचड़ का आभास होता है. मुझे पूरा विश्वास है यदि TTDC एवं मंदिर मैनेजमेंट इस और ध्यान देंगे तो अवश्य ही कोई रास्ता निकाल लेंगे।
हमारे पूर्वजों ने बिना आधुनिक सुविधाओं के कैसे इतने सुन्दर और भव्य मंदिर का निर्माण किया यह अत्यन्त प्रशंसनीय तो है ही आश्चर्य चकित भी करता है.ऐसी धरोहर छोड़ने के लिए हम उन्हें ह्रदय से नमन करते हैं. साथ ही हमारा कर्त्तव्य बनता है की हम इस धरोहर को सहेज कर रखें.




Thanks for this completed knowledge abt Rameshwaram & surrounding. मुझे लगा कि मैं वहीं पर हूं। आपको सादर धन्यवाद। क्या आपका मेल आई डी मिल सकता है??
ReplyDeleteANIRUDH TRIVEDI
anilko2004@gmail.com